Friday, November 19, 2010

(आलेख) जौहरी की निगाहों से तलाशे गए हीरे !

                                                                                                                         स्वराज्य करुण
                                        
हमारी यह भारत भूमि स्वयं अनमोल-रत्नों की खान है , जहां मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम , योगी राज भगवान श्रीकृष्ण , भगवान गौतम बुद्ध , भगवान महावीर , नानक , संत कबीर , महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानंद जैसी महान विभूतियों ने जन्म लेकर अपने महान विचारों और महान कार्यों से इस पुण्य भूमि को और भी ज्यादा मूल्यवान बना दिया .भारत की पहचान सोने-चांदी या हीरे-मोती जैसे कीमती आभूषणों से कहीं ज्यादा ऐसे मानव शरीर धारी रत्नों से बनी है.  इसी भारत भूमि के छत्तीसगढ़ राज्य  की धरती भी कुछ कम  रत्न-गर्भा  नहीं  है , जहां ज़मीन के भीतर लोहे , कोयले ,सोने और हीरे की खदानों का  अनमोल खजाना तो है , लेकिन उससे भी कहीं ज्यादा मूल्यवान हैं यहाँ के वे लोग , जो  भौतिक रूप से  भले ही  हमारे बीच नहीं हैं ,लेकिन जिनकी यश-कीर्ति की अनुगूंज  आज भी कायम है .भले ही समय के प्रवाह ने  उस पर  स्मृतियों की ढेर सारी परतें चढ़ा दी हैं , लेकिन  उनकी यह कीर्ति-पताका आधुनिकता के अराजक शोर में भी  समाज को सही रास्ता  दिखाने की ताकत रखती है .
 छत्तीसगढ़ के मैनपुर और देवभोग इलाके में हीरे की कुदरती  खदानों से हीरे जब निकलेंगे और  जब वे तराशे जाएंगे , तब की तब देखी जाएगी, लेकिन राज्य के मानव-जीवन में यादों की अमिट-छवियाँ छोड़ कर कहीं दूर जा चुके हीरों को तलाशने और उनकी  जीवनी को तराश कर जनता के बीच प्रकाश-स्तम्भ की तरह स्थापित करने का एक महत्वपूर्ण काम अभी -अभी सामने आया है .ये ऐसे अनमोल हीरे हैं ,जिनकी बदौलत छत्तीसगढ़ को भारत के महान स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर साहित्य , कला, संस्कृति सहित सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में देश और दुनिया में नयी पहचान मिली . हीरे  की  परख जौहरी ही जानता है. वरिष्ठ  साहित्यकार डॉ. विमल कुमार पाठक ने एक अनुभवी और कुशल जौहरी की तरह  पचपन ऐसी  महान विभूतियों की जीवन-गाथाओं को अपने शब्दों के सुवासित फूलों से सजाया-संवारा और लगभग तीन सौ पन्नों की पुस्तक में प्रस्तुत कर लोगों की धूमिल होती यादों को एक बार फिर तर -ओ -ताज़ा कर दिया है.एक साहित्यिक-जौहरी की पारखी निगाहों से खोजे गए और सिद्धहस्त लेखक की मंजी हुई लेखनी से तैयार इस  किताब का नाम लेखक ने  दिया है- 'छत्तीसगढ़ के हीरे : कहाँ गए ये लोग ?'.शीर्षक में यह सवाल सचमुच मानवीय सम्वेदनाओं के साथ बेहद  भावुकता  लिए हुए है कि हमारे अपने ये  लोग आखिर कहाँ चले गए , जो कल तक हमारे साथ थे और  जिनकी आज हमे सबसे ज्यादा ज़रूरत है, ताकि दिशाहीन होते जा रहे समाज को सही  दिशा मिल सके . समय-चक्र को उलटा घूमा कर हम उन्हें भौतिक रूप से अपने बीच वापस तो नहीं पा सकते , लेकिन उनकी जीवन-यात्रा के प्रेरणादायक प्रसंगों को याद कर हमारे आस-पास उनके मौजूद होने के एहसास को महसूस ज़रूर कर सकते हैं. शायद आज के माहौल में हमे सुकून देने के लिए यह एहसास ही काफी होगा . अनमोल रत्नों की इस पवित्र भूमि की पवित्र माटी से छान-बीन कर ऐसे चमकदार  हीरे-मोती हमारे सामने रखने के डॉ. पाठक की भागीरथ कोशिशों का यह पहला भाग है. दूसरा और तीसरा भाग भी वे जल्द लाने का प्रयास कर रहे हैं .
     पुस्तक के प्रारम्भ में अपने लेखकीय निवेदन में डॉ. विमल कुमार पाठक ने  लिखा है-'मुझे  उम्र के बढ़ते दौर में अपने पिता श्री सुंदर लाल पाठक से किस्से नहीं , वास्तविक जीवन के महत्वपूर्ण पात्रों , चरित्रों , चरित -नायकों , नेताओं , कलाकारों , स्वतन्त्रता-संग्राम सेनानियों , और बिलासपुर के गौरव-व्यक्तित्वों की गाथाएं सुनने को मोला करती थीं .अंग्रेजों के जमाने में  डॉ. ई. राघवेन्द्र राव को   ब्रिटेन की सरकार ने  तत्कालीन सी. पी. . एंड बरार प्रान्त (वर्तमान छत्तीसगढ़ और विदर्भ )का गवर्नर बनाया .खादी के वस्त्रों , भारतीय वेश-भूषा में रह कर उन्होंने गवर्नरी की . मोची और रेल्वे  के टी.टी. ई . सहपाठियों को उन्होंने पुलिसिया परेशानी से उबारा' . डॉ. विमल कुमार पाठक ने अपने पिता से छत्तीसगढ़ के ऐसे कितने ही महान लोगों की गौरव-गाथाएं सुनी . जिनसे उनके कवि-ह्रदय और अवचेतन पर गहरा प्रभाव पड़ा . डॉ. पाठक के लेखकीय निवेदन के अनुसार वे सन सत्तर-अस्सी के दशक में हमारे भारतीय दूर-दर्शन पर आए धारावाहिक 'कहाँ गए वे लोग' से भी काफी प्रभावित हुए , जिसमे देशभक्त सैनिकों की संघर्ष भरी गाथाओं का ह्रदय-स्पर्शी प्रस्तुतिकरण हुआ करता था. फिर बिलासपुर के पत्रकार श्री रामाधार देवांगन द्वारा  वर्ष १९९५  में वहाँ के दैनिक 'नव-भारत' में इसी शीर्षक से एक विशेष लेख-माला के प्रस्तुतिकरण ने भी डॉ. पाठक को प्रभावित किया, जिसमे श्री देवांगन ने छत्तीसगढ़ की  १३४ विभूतियों के जीवन-वृत्त को धारावाहिक प्रस्तुत किया था . इनमे से ज्यादातर बिलासपुर संभाग के थे . पाठक जी को लगा कि उन्हें भी ऐसी गौरव-गाथाएं लिखनी चाहिए , खास तौर पर उन लोगों के बारे में , जिनके बारे में वे भली-भांति जानते हैं और उनमे से कई लोगों के सम्पर्क में भी रहे हैं . वे आगे लिखते हैं-' मैंने निश्चय कर लिया कि दुर्ग , बिलासपुर , रायपुर . भिलाई , राजनांदगांव और अन्य स्थानों के गौरव-जनों पर लिखूंगा '. संकल्प-शक्ति बड़े से बड़ा काम करा लेती है . डॉ. पाठक  ने १२ अक्टूबर २००० को एक स्कूटर-दुर्घटना में घायल होने के बाद , कई बार के आपरेशनों के बावजूद , अपने शारीरिक कष्टों की परवाह किए बिना अपना यह कार्य जारी रखा.उन्होंने भी एक लेख-माला तैयार कर ली  धमतरी के हिन्दी दैनिक'प्रखर-समाचार 'के साप्ताहिक परिशिष्ट 'सप्त-रंग' में २२ सितम्बर २००७ से इसका प्रकाशन शुरू हुआ और कुल ६० किश्तें छपीं . वे कहते हैं-  शारीरिक-आर्थिक अस्वस्थता के बावजूद मैंने तय कर लिया है कि छत्तीसगढ़ के हमारे क्रांतिकारियों , शहीदों , बेदाग़ राजनीतिज्ञों , आदर्श प्रस्तुत करने वाले महान लोगों ,साहित्य, संगीत संस्कृति और विभिन्न कलाओं में पारंगत रहे लोगों , दान-वीरों , खिलाड़ियों , और धर्म-अध्यात्म क्षेत्र के अनुकरणीय लोगों पर' छत्तीसगढ़ के हीरे' शीर्षक से पुस्तक के भाग-दो और कालान्तर में भाग-तीन का लेखन और प्रकाशन मुझे करना है.
       पुस्तक के प्रथम भाग में उन्होंने  पचपन विभूतियों की प्रेरणादायक जीवनी श्रृंखला की पहली कड़ी में ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर की गौरव-गाथा पेश की है , जो तत्कालीन ब्रिटिश भारत में छत्तीसगढ़ के प्रथम बैरिस्टर थे और सन १९३७ में महात्मा गांधी की पेश-कश के बावजूद सी.पी .एंड बरार प्रांत के मुख्य-मंत्री का पद स्वीकार करने से यह कह कर इनकार कर दिया था कि सीमित आय में बिलासपुर के घर का खर्च नहीं चला पाता , तो मुख्य मंत्री बन कर नागपुर में रहते हुए दो-दो व्यवस्थाओं को कैसे पूरा कर पाऊंगा ? ,अगली कड़ी में पाठक जी ने पाठकों के सामने डॉ. ई. राघवेन्द्र राव की जीवनी रखी है , जो छत्तीसगढ़ की संस्कार धानी बिलासपुर के निवासी थे और जिन्हें अंगरेजी शासन के दौरान प्रथम हिन्दुस्तानी गवर्नर बनाया गया था . इसके बावजूद भारतीयता उनकी रग-रग में रची-बसी थी . संकलन में पाठक जी ने छत्तीसगढ़ के क्रांतिकारी कवि कुञ्ज बिहारी चौबे की जीवन-गाथा में उनकी तुलना बांग्ला देश के विद्रोही कवि काजी नज़रूल इस्लाम से की है . छत्तीसगढ़ का गौरव बढ़ाने वाले साहित्यकारों में डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी , डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र , पद्मश्री सम्मान प्राप्त  मुकुटधर पाण्डेय  ,पंडित द्वारिकाप्रसाद तिवारी 'विप्र' कोदूराम 'दलित' , भगवती लाल सेन , केशव पांडे , इतिहासकार पंडित लोचनप्रसाद पाण्डेय , ,प्यारेलाल गुप्त  , बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव , स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी डॉ. खूबचंद बघेल , कमल नारायण शर्मा , महान आध्यात्मिक चिंतक स्वामी आत्मानंद , छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला सांसद मिनी माता , प्रसिद्ध पंथी नर्तक देवदास बंजारे , दानवीर तुलाराम आर्य और  दान-दात्री  बिन्नी बाई . श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी और समाज सेवी विघ्नहरण सिंह पर केंद्रित आलेख भी डॉ . पाठक की इस पुस्तक में शामिल है. उन्होंने किताब में  भारत की  कुछ ऐसी शख्सियतों से जुड़ी अपनी यादों को भी कलमबद्ध किया है ,जो छत्तीसगढ़ में तो नहीं जन्मे , लेकिन  जिन्होनें किसी अवसर विशेष पर यहाँ आकर जनता के दिलों पर अपना अमिट प्रभाव डाला . इनमे महान गायक और संगीतकार पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर . महान फिल्म अभिनेता पृथ्वीराज कपूर और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा की छत्तीसगढ़ यात्राओं से सम्बन्धित प्रसंग शामिल हैं.लेखक ने ऐसी विभूतियों के यात्रा-प्रसंगों  को भी अपनी किताब के ज़रिए यहाँ की माटी से जोड़ा है.
        पुस्तक का विमोचन करते हुए छत्तीसगढ़ के मुख्य मंत्री डॉ. रमन सिंह ने बहुत सही कहा कि प्रदेश के जन-जीवन से अभिन्न रूप से जुड़ी  इन सभी ज्ञात -अल्प ज्ञात महान विभूतियों की जीवन-गाथा वर्तमान पीढ़ी के साथ-साथ हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणादायक होगी. डॉ. सिंह ने यह भी कहा कि इस पुस्तक को पढ़ कर छत्तीसगढ़ को देखने और यहाँ के ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक वैभव के बारे में भी बहुत कुछ जानने , समझने और सीखने का अवसर मिलेगा .राजधानी रायपुर में देव-उठनी एकादशी के दिन मुख्य मंत्री के निवास पर आयोजित इस महत्वपूर्ण पुस्तक के विमोचन समारोह में एक उल्लेखनीय बात यह भी थी कि पुस्तक में वर्णित विभूतियों की वर्तमान पीढ़ी के अनेक परिजन भी वहाँ आए थे ,जिन्हें लेखक के आग्रह पर मुख्य मंत्री ने अपने हाथों से किताब की सौजन्य-प्रतियां और  डॉ. विमल पाठक ने इनमे से प्रत्येक को श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया. विमोचन समारोह की अध्यक्षता बख्शी सृजन पीठ भिलाई नगर के अध्यक्ष श्री बबन प्रसाद मिश्र ने की . छत्तीसगढी राज भाषा आयोग के अध्यक्ष श्री श्याम लाल चतुर्वेदी , स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी और रायपुर के पूर्व लोक सभा सांसद श्री केयूर भूषण और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे.
    साहित्यिक प्रकाशनों के मामले में भी छत्तीसगढ़ आज कहीं से भी पीछे नहीं है.  राज्य निर्माण के बाद पिछले एक दशक में तो इसमें और भी तेजी आयी है . यह प्रदेश अब अपनी विकास-यात्रा के ग्यारहवें वर्ष में प्रवेश कर चुका है. ऐसे महत्वपूर्ण समय में यहाँ की महान हस्तियों पर खोज-पूर्ण नज़रिए से लिखी गयी किसी किताब का आना भी एक महत्वपूर्ण और यादगार घटना है. इसके लिए लेखक डॉ. विमल कुमार पाठक और पुस्तक के प्रकाशक श्री महावीर अग्रवाल निश्चित रूप से प्रशंसा के पात्र हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि पाठक जी की खोजी निगाहें आने वाले समय में छत्तीसगढ़ की पवित्र माटी से और भी कई बेशकीमती हीरे ढूंढ निकालेंगी , जिनके जीवन के प्रेरक प्रसंग हमारे  लिए मार्ग-दर्शक साबित होंगें .
                                                                                                                       स्वराज्य करुण

2 comments:

  1. पाठक जी की मेहनत के बारे में जानकार अच्छा लगा !

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  2. कार्तिक पूर्णिमा एवं प्रकाश उत्सव की आपको बहुत बहुत बधाई

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