Wednesday, August 23, 2017

पापड़ से बनी पहचान !

         नकारात्मक ख़बरों के अत्यधिक शोर से बोर होकर मैंने बीती रात नेशनल जिओग्राफिक चैनल पर भारतीय महिलाओं की संगठन शक्ति और उसकी शानदार कामयाबी की कहानी देखी .चैनल ने एक रोचक डाक्यूमेंट्री के रूप में इसे प्रस्तुत किया है . इसमें स्वावलम्बन के लिए साधारण महिलाओं का असाधारण जज्बा उनकी ही जुबानी सुनने और देखने लायक है और हम जैसे लोगों के लिए उनके सम्मान में कुछ लिखने लायक भी . वैसे तो उनकी उद्यमशीलता के बारे में कई लोगों ने समय-समय पर काफी कुछ लिखा भी है . इंटरनेट पर भी उनकी गौरवगाथाएं मौजूद है ,लेकिन आज नेशनल जिओग्राफिक चैनल ने मुझे भी उनके सम्मान में कुछ कहने और लिखने को मजबूर कर दिया .यह प्रेरक कहानी श्री महिला गृह उद्योग की है,जिसका लिज्जत पापड़ आज देश-विदेश में इतना लोकप्रिय हो गया है कि पापड कहते ही लिज्जत का नाम अपने आप जुबान पर आ जाता है . 
         यह कोई प्राइवेट कम्पनी या निजी उद्योग नहीं है ,बल्कि  सहकारिता के आधार पर चल रहा भारतीय महिलाओं का गृह उद्योग है . मेरा उद्देश्य इस पापड़ का विज्ञापन करना नहीं और  न ही  इस संस्था के किसी पदाधिकारी से मेरा कोई परिचय है और न ही मैं इस प्रोडक्ट का  डिस्ट्रिब्यूटर हूँ  , इस  आलेख को लिखने और प्रस्तुत करने का मेरा मकसद  सिर्फ  सहकारिता के महत्व को रेखांकित करना और  उन महिलाओं के हौसले को सलाम करना है जिन्होंने करीब ५८ साल पहले १५ मार्च १९५९ को सिर्फ ८० रूपए की पूँजी लगाकर इस घरेलू उद्योग की शुरुआत की थी और आज उनका सालाना कारोबार ५०० करोड़ रूपए तक पहुँच गया है . कारोबार शुरू करने के लिए उन्होंने ये अस्सी रूपए भी एक सहृदय सामाजिक कार्यकर्ता ,भारत समाज सेवक संघ के अध्यक्ष श्री छगनलाल पारेख से उधारी में लिए थे . वर्ष १९६६ में सहकारी समिति के रूप में उनकी संस्था को सोसायटी अधिनियम के तहत पंजीयन मिला . जिस पापड़ उद्योग की शुरुआत मुम्बई में सिर्फ सात महिलाओं ने की थी , आज देश भर में उनकी ६२ शाखाएं हैं ,जिनमे सदस्य के रूप में शामिल ४२ हजार से ज्यादा महिलाएं न सिर्फ इस उद्योग में रोजगार प्राप्त कर रही हैं ,बल्कि अपने देशवासियों के और विदेशों के लिए भी प्रतिदिन करोड़ों की संख्या में स्वादिष्ट पापड बना रही है.सुदूर दक्षिण अफ्रीका तक लिज्जत पापड का निर्यात होने लगा है .अपनी शाखाओं में लिज्जत के ब्रांड नेम से पापड बनाने वाली महिलाएं गुणवत्ता नियन्त्रण का पूरी गंभीरता से ध्यान रखती हैं . उन्हें कच्चा माल संस्था की ओर से दिया जाता है और वे अपनी सुविधा से घर पर ही  संस्था के निर्धारित मानकों के अनुसार पापड़  बनाकर शाखा में जमा करती हैं  पापड़ किसी भी शाखा में बने, उसका . स्वाद एक जैसा मिलेगा .

       हमारे देश में  ' पापड़ बेलने ' का मुहावरा पता नहीं कब से चला आ रहा  है । इंसान को दुनिया में जिन्दा रहने के लिए कई तरह के पापड़ बेलने पड़ते हैं ,लेकिन अगर सामूहिक रूप से कोई काम शुरू किया जाए तो जिंदगी का सफ़र आसान हो सकता है । श्री महिला गृह उद्योग की सफलता की इस कहानी से यह सन्देश मिलता है । सरकार से कोई आर्थिक सहायता लिए बिना उन्होंने जिस यात्रा की शुरुआत की थी , वह तरक्की के रास्ते पर कई पड़ावों से गुजरते हुए आज भी जारी है । इन महिलाओं ने अपने पापड़ उद्योग से  न सिर्फ अपनी ,बल्कि अपने देश की भी पहचान बनाई है . 
     इस गृह उद्योग से जुडी ये महिलाएं अपनी संस्था के कारोबार में बराबर की हिस्सेदार हैं .उन्हें कारोबार के मुनाफे का बोनस भी मिलता है . बच्चों को कॉलेज पढाना हो , डॉक्टर ,इंजीनियर बनाना हो तो संस्था अपनी जरूरतमन्द सदस्यों को आर्थिक सहायता भी देती है ..लिज्जत पापड के लिए प्रसिद्ध श्री महिला गृह उद्योग आज भारत में महिला सशक्तिकरण और सहकारिता आन्दोलन की सफलता की मिसाल बन चुका है . तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी ने केन्द्रीय कृषि और ग्रामोद्योग मंत्रालय द्वारा नई दिल्ली में १४ मार्च २००३ को आयोजित समारोह में महिलाओं के इस पापड उद्योग को सर्वश्रेष्ठ ग्रामोद्योग की श्रेणी में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया था. संस्था की ओर से श्रीमती ज्योति जे.नाईक ने यह पुरस्कार ग्रहण किया था . श्री महिला गृह उद्योग जैसे छोटे-छोटे प्रयास अगर देश के हर गाँव, हर शहर में हो तो महिलाओं के आर्थिक स्वावलम्बन का सपना बहुत जल्द साकार हो सकता है .वैसे विगत  कुछ वर्षों से देश के सभी राज्यों में लाखों की संख्या में महिला स्व-सहायता समूहों  का गठन किया गया है ,जिन्हें विभिन्न प्रकार के छोटे-छोटे कारोबार और घरेलू उद्योग के लिए सरकारी अनुदान के साथ  काफी सस्ते ब्याज पर ऋण भी दिया जाता है . महिलाओं को आत्म निर्भर आत्म निर्भर बनाने की यह पहल निश्चित रूप से सराहनीय है ,लेकिन  उनके गृह उद्योगों में बनी वस्तुओं को बाज़ार दिलाना एक बड़ी चुनौती है ,फिर भी 'लिज्जत' की स्वर्णिम सफलता  की कहानी उनके लिए प्रेरणा बन सकती है . महिलाओं की सहकारी संस्था द्वारा संचालित अमूल डेयरी की शानदार कामयाबी  भी इन महिला स्व-सहायता समूहों के लिए एक बेहतरीन उदाहरण है .

                                                                                                  -स्वराज करुण            

                                                                                         

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (25-08-2017) को "पुनः नया अध्याय" (चर्चा अंक 2707) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आदरणीय शास्त्री जी ! हार्दिक आभार .

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